Jump to content

बहार आई है झूलन की घटा छाई है सावन की

From Wikisource
बहार आई है झूलन की घटा छाई है सावन की
by महेंदर मिसिर
301429बहार आई है झूलन की घटा छाई है सावन कीमहेंदर मिसिर

बहार आई है झूलन की घटा छाई है सावन की।
छटा आई है मवसिम की सदा बिहरी जगावन की।
कहीं है शोर मोरन की कहीं पपिहा की बोलन की
कही झिंगुर झनकते हैं कही विरही सतावन की।
कहीं बिजली चमकती है कहीं बदरी लचकती है।
कहीं बूँदें बरसती है सोहावन दिन हैं झूलन की।
बजे मिरदंग ओ तबला तूमरा ओ सितारन की।
झुलावें राम ओ लछुमन को झूलें कुंडल कानन की।
झुलावें रामचन्दर को महेन्दर रूप पावन की।
करेंगे पार भवसागर नहीं उम्मीद आवन की।


This work is now in the public domain because it originates from India and its term of copyright has expired. According to The Indian Copyright Act, 1957, all documents enter the public domain after sixty years counted from the beginning of the following calendar year (ie. as of 2024, prior to 1 January 1964) after the death of the author.